इलाहाबाद : हाईकोर्ट ने कहा है कि मृतक आश्रित नियुक्ति योजना परिवार पर अचानक आये संकट से उबरने के लिए परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की है। इसका आशय यह नहीं कि आश्रित जब चाहे नियुक्ति की मांगकर सकता है। यदि मृतक कर्मचारी की संतान नाबालिग है तो उसकी पत्नी की नियुक्ति की जा सकती है, ताकि वह परिवार को आर्थिक संकट से बचा सके। कोर्ट ने कहा है कि कर्मचारी की मौत के आठ साल बाद आश्रित की नियुक्ति योजना के उद्देश्य को अर्थहीन बना देगी। कोर्ट ने कहा है कि आठ साल बाद आश्रित की नियुक्ति की मांग उचित नहीं है, अनुच्छेद 14 के विपरीत है।
![मृतक आश्रित नियुक्ति योजना तात्कालिक सहायता देना है न कि नौकरी देना](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1KjY83oRK_5vJcef4z94BCZWYM-91dMH3N_h8NH7SDAzzRD-RV9A-jtTINPy0nD6BYVPAE964ydgMVv8BzyWon4_Ldy4eXiWyzJLPQyBhZDxCPVSF-6MuJY_PcZwTlJE_4hiPQy58Eg/s1600/mrutak-asharit.jpg)
कोर्ट ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण इलाहाबाद के कृष्णा पाठक के पुत्र को नौकरी पर रखने के आदेश को रद कर दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति विक्रमनाथ तथा न्यायमूर्ति दयाशंकर त्रिपाठी की खंडपीठ ने भारत संघ की तरफ से दाखिल याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याची की तरफ से सहायक सालीसिटर जनरल ज्ञान प्रकाश ने कहा है कि न्यायाधिकरण का आदेश मृतक आश्रित सेवा नियमावली के उपबंधों एवं मानकों के विपरीत है। याची के पति मिलिट्री एरिया में पोस्ट ऑफिस में कार्यरत थे। सेवाकाल में तीन अगस्त 1999 को उनकी मौत हो गयी। 18 फरवरी 2008 को आश्रित की नियुक्ति की अर्जी दी गयी। साढ़े आठ साल बाद दाखिल अर्जी पर विचार करते हुए विभाग ने 2011 में अर्जी निरस्त कर दी। केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने नियुक्ति पर विचार का दिया था निर्देश जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी थी।