गुरुवार से प्रदेश में शुरू हुई हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की बोर्ड परीक्षाओं की बदहाली पहले दिन ही खुलकर सामने आ गई। सख्ती के दावे धरे के धरे रह गये। कई जिलों में जमकर नकल हुई। एक खास दल के प्रभुत्व वाले जिले में नियम-कायदों की धज्जियां उड़ा दी गयीं। अधिकांश केंद्रों पर अव्यवस्था और कक्ष निरीक्षकों की कमी
रही। अलीगढ़ में नकल कराते मिले तीन केंद्र व्यवस्थापकों समेत आठ लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ है। मथुरा में नकल कराने वालों ने सिपाही को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। प्रदेश भर में तीन लाख 39 हजार 259 परीक्षार्थियों ने सख्ती के भय से परीक्षा छोड़ दी। डेढ़ सौ से ज्यादा नकलची पकड़े गए। दर्जन भर से ज्यादा फर्जी परीक्षार्थी भी पकड़ में आए। इनकी खबरें और फोटो अखबारों के अलावा चैनलों में दिखाई दिए। यह सब यह बताने के लिए काफी है कि कुछ सालों में यूपी बोर्ड की परीक्षाएं किस माहौल में और किस ढंग से संपन्न हो रही थीं। सूबे में अब सरकार बदल रही है लेकिन, परीक्षार्थियों के रंगढंग नहीं बदल पाये। कई सालों से जो आदत पड़ गई है उसे बदलने में शायद लंबा वक्त लगेगा।
एशिया की सबसे बड़ी परीक्षा कराने वाले यूपी बोर्ड की यह हालत दरअसल वर्षो के कुप्रबंधन और अनुचित राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण हुई है। किसी दौर में यह संस्था शुचितापूर्ण परीक्षाएं कराने के लिए विख्यात थी। इस बोर्ड से परीक्षाएं पास करने वाले देश के महत्वपूर्ण पद पर विराजते थे लेकिन, आज उसकी यह दशा बहुत कुछ सोचने पर विवश कर देती है। सामूहिक नकल के घुन ने इस संस्था को बेजान कर दिया है। प्रदेश के अच्छे छात्र और शैक्षणिक संस्थाएं इस बोर्ड से किनारा कर सीबीएसई की शरण में जा रहे हैं। यह सब प्रदेश सरकार की नाक के नीचे और जानकारी में हो रहा है लेकिन, कई वर्षों में उसकी तरफ से ऐसे प्रयास होते नजर नहीं आए जिससे इस संस्था की साख में कोई मजबूती दिखती। अलबत्ता राजनेताओं के बदनाम विद्यालयों को परीक्षा केंद्र बनाए जाने से यह धारणा जरूर मजबूत हुई कि इस बोर्ड के माध्यम से परीक्षाएं आसानी से उत्तीर्ण की जा सकती हैं। अब जबकि जल्द नई सरकार आकार ले लेगी, यह बहुत जरूरी है कि प्रदेश का शैक्षणिक ढांचा दुरुस्त करने पर प्राथमिकता से कदम उठाये जायें। इसके लिए बोर्ड परीक्षाओं को ठीक से संपन्न कराने पर पर्याप्त व तत्काल ध्यान दिया जाये। सख्ती से नकल रोकी जाये।
रही। अलीगढ़ में नकल कराते मिले तीन केंद्र व्यवस्थापकों समेत आठ लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ है। मथुरा में नकल कराने वालों ने सिपाही को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। प्रदेश भर में तीन लाख 39 हजार 259 परीक्षार्थियों ने सख्ती के भय से परीक्षा छोड़ दी। डेढ़ सौ से ज्यादा नकलची पकड़े गए। दर्जन भर से ज्यादा फर्जी परीक्षार्थी भी पकड़ में आए। इनकी खबरें और फोटो अखबारों के अलावा चैनलों में दिखाई दिए। यह सब यह बताने के लिए काफी है कि कुछ सालों में यूपी बोर्ड की परीक्षाएं किस माहौल में और किस ढंग से संपन्न हो रही थीं। सूबे में अब सरकार बदल रही है लेकिन, परीक्षार्थियों के रंगढंग नहीं बदल पाये। कई सालों से जो आदत पड़ गई है उसे बदलने में शायद लंबा वक्त लगेगा।
एशिया की सबसे बड़ी परीक्षा कराने वाले यूपी बोर्ड की यह हालत दरअसल वर्षो के कुप्रबंधन और अनुचित राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण हुई है। किसी दौर में यह संस्था शुचितापूर्ण परीक्षाएं कराने के लिए विख्यात थी। इस बोर्ड से परीक्षाएं पास करने वाले देश के महत्वपूर्ण पद पर विराजते थे लेकिन, आज उसकी यह दशा बहुत कुछ सोचने पर विवश कर देती है। सामूहिक नकल के घुन ने इस संस्था को बेजान कर दिया है। प्रदेश के अच्छे छात्र और शैक्षणिक संस्थाएं इस बोर्ड से किनारा कर सीबीएसई की शरण में जा रहे हैं। यह सब प्रदेश सरकार की नाक के नीचे और जानकारी में हो रहा है लेकिन, कई वर्षों में उसकी तरफ से ऐसे प्रयास होते नजर नहीं आए जिससे इस संस्था की साख में कोई मजबूती दिखती। अलबत्ता राजनेताओं के बदनाम विद्यालयों को परीक्षा केंद्र बनाए जाने से यह धारणा जरूर मजबूत हुई कि इस बोर्ड के माध्यम से परीक्षाएं आसानी से उत्तीर्ण की जा सकती हैं। अब जबकि जल्द नई सरकार आकार ले लेगी, यह बहुत जरूरी है कि प्रदेश का शैक्षणिक ढांचा दुरुस्त करने पर प्राथमिकता से कदम उठाये जायें। इसके लिए बोर्ड परीक्षाओं को ठीक से संपन्न कराने पर पर्याप्त व तत्काल ध्यान दिया जाये। सख्ती से नकल रोकी जाये।