21.4.17

छुट्टियों की छुट्टी करने का समय: राष्ट्र को अवकाश नहीं कर्शीलता का नया आकाश चाहिए इसीलिए बेवजह की छुट्टियों का कोई औचित्य नहीं

महापुरुष भी साधारण नुष्य होते हैं। वे अपने सतत श्र-तप के बल पर असाधारण बनते हैं। सत्य, शिव और सुंदर के नए प्रतीक-प्रतिान गढ़ते हैं। इतिहास की गति का संवर्धन करते हैं। इतिहास ें हस्तक्षेप करते हैं। इतिहास उन्हें
अपने हृदय ें विशेष स्थान देता है। वे असाधारण होकर भी साधारण बने रहते हैं। असाधरण होकर साधारण बने रहने के लिए अतिरिक्त परिश्र और साधना की आवश्यकता है। सो उनका यशगान होता है, लेकिन उनके यशस्वी होने का ुख्य कारण तपस्वी होना ही है। तपस्वी ही यशस्वी होते हैं। वे ह सभी को प्रेरित करते हैं। ह उन्हें याद करते हैं, लेकिन उनकी जन्तिथि या पुण्यतिथि पर अवकाश चाहते हैं। अतिरिक्त श्र कर् करने वाले पूर्वजों की स्ृति ें नियित कर् से छुट्टी दिलचस्प उलटबांसी है। प्रेरणा स्नोत कर्शील हैं, लेकिन प्रेरणा की तिथि पर छुट्टी। कायदे से उनकी स्ृति ें रोजर्रा के बजाय ज्यादा का करना चाहिए। परिश्र को उत्सव बनाना चाहिए और उत्सव को सृजन का अवसर, लेकिन ह छुट्टी चाहते हैं। हापुरुषों के बहाने कर् विुखता का आलस्य आत् विरोधी है और गंभीर रूप ें विचारणीय। उत्तर प्रदेश के ुख्यंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऐसी छुट्टियों की ओर सूचे देश का ध्यानाकर्षण किया है। उनके विचार पर स्वाभाविक ही बहस चली है। रविवार की छुट्टी अंग्रेज लाए थे, लेकिन रविवार उनके चर्च कर्कांड का दिन है। श्रीरा र्यादा पुरुषोत्त हैं और श्रीकृष्ण प्रीति प्रे और भारतीय दर्शन के हानायक। इनके जन्ोत्सव साज ें आनंद और र्यादा रस का आच्छादन करते हैं और बुद्ध से जुड़े उत्सव भी। गांधी भूले बिसरे नायक हैं। गांधी जयंती अब उत्सव नहीं रही। उत्सव होती तो और अच्छा होता। डॉ.अंबेडकर की जन्तिथि पर बेशक जनआलोड़न होता है, गर ऐसी तिथियां छुट्टी नहीं सााजिक उत्सवधर्िता, सरसता और राष्ट्रीय एकता का अवसर हैं। प्रकृति सतत कर्रत है। प्रत्येक अणु पराणु गतिशील है। सूर्य और चंद्र भी छुट्टी पर नहीं जाते, वे प्रतिपल कर्रत हैं। ऋग्वेद के अनुषंगी ‘ऐतरेय ब्राह्ण’ ें सतत् कर् का संदेश है। बताते हैं कि सोने वाला कलियुग का, जाग्रत द्वापर का, खड़ा हुआ त्रेता का और सतत कर्रत व्यक्ति सतयुग का प्रतिनिधि है इसलिए चलते रहो-चरैवेति, चरैवेति। यहां युगबोध की नई धारणा है और अवकाश भोग की प्रवृत्ति को सीधी चुनौती भी। 1भारत अति प्राचीन राष्ट्र है। सहस्रों पूर्वजों ने सतत कर् किए। दर्शन और विज्ञान का बोध-शोध किया। कीट-पतंगे और नदी, पर्वत, वनस्पति के प्रति भी संवेदनशील संस्कृति का विकास उनकी ही देन है। आज का भारत पूर्वजों के ही सचेत और अचेत कर्ो का परिणा है। प्लेटो की किताब ‘रिपब्लिक’ के हजारों बरस पहले यहां वैदिक काल ें भी सभा सिति जैसी गणतांत्रिक संस्थाओं का उल्लेख है। राष्ट्रगान का ‘जनगणन’ उसी स्ृति का पुनर्सृजन है। हापुरुषों की सूची लंबी है। विश्व पटल पर सीजर, सिकंदर, फ्रेडरिक द ग्रेट वीर कहे जाते हैं, लेकिन वैदिक ंत्र द्रष्टा विश्वाित्र, वशिष्ठ, अथर्वा, ऐतरेय और कालांतर ें बुद्ध, पतंजलि, शंकराचार्य, नानक, कबीर, रविदास और तुलसी वीर नहीं कुछ और हैं। स्कॉटलैंड के राजा राबर्ट यहूदियों की ोसेस जैसी वीरता भारत ें राणा प्रताप की है। वीरता की बात अलग है। नीत्शे का ‘सुपरैन’ और कार्लाइल का ‘हीरो’ एक जैसे नहीं हैं। योगी अरविंद की धारणा का ‘भावी ानव’ दुनिया के अन्य चिंतकों से भिन्न है। भारत के हापुरुष ार्गदर्शक हैं। युधिष्ठिर ने यक्ष को बताया था, ‘वेद वचन भिन्न-भिन्न। ऋषि अनेक। धर् तत्व गुह्य है। हापुरुषों का ार्ग सतत् कर्शीलता ही है। अवकाशभोगी नहीं। इसलिए छुट्टी के आकर्षण से छुट्टी लेना ही राष्ट्रीय कर्तव्य है। बेशक अवकाश का अपना आनंद है, लेकिन यह अवकाशभोगियों को नहीं िलता। अवकाश का आनंद कठिन परिश्र का पुरस्कार है। 1ऋग्वेद ें देवों की प्रीति को र्य बताया गया है। कहा गया है कि यह सुख परिश्री को ही उपलब्ध है। तब भी भारत ें सर्वाधिक छुट्टियां हैं। अेरिकी संघ सरकार ें सिर्फ 10 छुट्टियां हैं। पुर्तगाल, यूक्रेन, न्यूजीलैंड, नीदरलैंड की संख्या भी ऐसी ही है। संयुक्त अरब अीरात ें इससे भी क अवकाश हैं। भारत ें 21 सार्वजनिक छुट्टियां हैं और पाकिस्तान, तुर्की और थाईलैंड ें लगभग 16 अवकाश ही हैं। जापान, वियतना, स्वीडन ें भी सिर्फ 15 दिन ही अवकाश हैं। फिनलैंड ें 15, स्पेन ें 14, लेकिन ब्रिटेन ें लगभग 8-9 ही छुट्टियां हैं। भारत उत्सव प्रिय देश है, लेकिन विकास ें अग्रणी होने को तत्पर देश ें छुट्टियों की संख्या काफी है। छुट्टी राष्ट्रीय उत्पादकता ें सेंधारी है। नोवैज्ञानिक विश्लेषणों के अनुसार का न करना स्वाभाविक प्रवृत्ति है। वेतन आदि सुविधाएं कर्प्रेरणा हैं, लेकिन रुचिपूर्ण का सभी को अच्छे लगते हैं। पूर्वजों ने सभी काों को प्रेय और श्रेय ें बांटा है। प्रेय कार्य प्रिय है, लेकिन श्रेय कार्य लोकप्रिय हैं और राष्ट्रीय कर्तव्य भी हैं। राष्ट्र संपदा ें वृद्धि का भाग सबको िलता है इसलिए बेवजह के अवकाश का कोई औचित्य नहीं। 1भारत ें हापुरुषों की संख्या बड़ी है। राजनीतिक कारणों से इस सूची ें लगातार वृद्धि हो रही है। उत्तर प्रदेश ें 36 से ज्यादा सरकारी छुट्टियां हैं। शिक्षा क्षेत्र ें और ज्यादा। अन्य राज्यों ें भी कोबेश ऐसी ही स्थिति है। छुट्टी के औचित्य पर बहस नहीं होती। राजनीति ही निर्णायक है। आ आदी का छुट्टी ें कोई रस नहीं है। उसे बैंक आदि सरकारी दफ्तरों ें जाने पर ही छुट्टी का पता चलता है। हत्वपूर्ण सााजिक राष्ट्रीय उत्सवों की बात दूसरी है। होली, ईद, रक्षा बंधन या यीशु से जुड़े अवकाश परस्पर िलन का अवसर होते हैं। स्वाधीनता दिवस और गणतंत्र दिवस इतिहास बोध देते हैं, लेकिन उन्हें अवकाश रूप नहीं उत्सवरूप ें ही नाया जाना चाहिए। होली रक्षा बंधन या ईद का अवकाश बढ़ाने ें भी कोई हर्ज नहीं। इन अवसरों पर दूरदराज का कर रह लोग घर आते हैं, वे दूर यात्रएं भी करते हैं। हापुरुषों से जुड़े अवकाशांे को उत्सव बनाना चाहिए। कार्यस्थल पर उनके व्यक्तित्व-कृतित्व की चर्चा और फिर नियित का। ऐसे अवसरों पर शिक्षण संस्थाओं ें छुट्टी से राष्ट्रीय क्षति होती है। भारत ें विशेष कार्यसंस्कृति की आवश्यकता है। राष्ट्रजीवन के सभी क्षेत्रों ें कठोर परिश्र की दरकार है। ह विकासशील देश कहे जाते हैं। पूर्ण विकसित हो जाने को बेताब भी हैं। सतत कर्शीलता का कोई विकल्प नहीं। प्रत्येक व्यक्ति को अपने कार्यक्षेत्र ें स्वयं के सवरेत्त को प्रकट करना ही चाहिए। राष्ट्र को अवकाश नहीं कर्शीलता का नया आकाश चाहिए। वापंथी ानते रहे हैं कि कला, साहित्य और विज्ञान का विकास अवकाशभोगियों ने किया है। अतिरिक्त उत्पादन के कारण िले अवकाश के कारण सभ्यता-संस्कृति के विकास का विचार झूठा है। भारतीय दर्शन, संस्कृति, सभ्यता, साहित्य और आचार शास्त्र का विकास अतिरिक्त उत्पादन से नहीं, अपितु अतिरिक्त जिज्ञासा और अतिरिक्त श्र कर् से ही संभव हुआ है। यहां सतत कर्निष्ठा से ही कर्योग खिला है। गीता प्रबोधन ें श्रीकृष्ण ने अजरुन को बताया है कि सतत कर् से ही जनक आदि ने सिद्धि पाई। ुङो कोई अभाव नहीं और न कोई आवश्यकता तो भी ैं प्रतिपल कर्रत रहता हूं, लेकिन आज ह छुट्टी चाहते हैं किसी न किसी बहाने।1(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं)
चूंकि राष्ट्र को अवकाश नहीं कर्शीलता का नया आकाश चाहिए इसीलिए बेवजह की छुट्टियों का कोई औचित्य नहींहृदयनारायण दीक्षितअवधेश राजपूत